दरिया वो कहाँ रहा है जो था ये शहर का आख़िरी क़िस्सा-गो था जो ख़ाक सी दिल में उड़ रही है याँ कोई ग़ज़ाल हो न हो था अब से ये हमारा घर नहीं ख़ैर पहले भी न था ख़याल तो था साबित नहीं कर सकोगे तुम लोग क्या मेरा वजूद था चलो था दोनों घड़ियों पर हिज्र का वक़्त होना नहीं चाहिए था सो था इस ख़्वाब में क्या नहीं दर-अस्ल बस कह तो दिया ना ख़्वाब जो था