दरमांदगों की आँख से आँसू जो ढल गए चश्मे किसी के लुत्फ़-ओ-करम के उबल गए डाली जो उस ने एक उचटती हुई नज़र ख़स्ता-दिलान-ए-राह-ए-मोहब्बत बहल गए हम और बारगाह-ए-रिसालत-पनाह में मारे ख़ुशी के आँख से आँसू निकल गए पहुँचे जो हम दयार-ए-मदीना में सर के बल सब अपने अगले पिछले तसव्वुर बदल गए फिर हम थे और रौज़ा-ए-अक़्दस की जालियाँ अरमान क्या बताऊँ कि क्या क्या मचल गए क़ुर्ब-ए-हुज़ूर धोने लगा दिल के सब उयूब बातिल तसव्वुरात थे जितने पिघल गए नाज़ाँ है 'तहनियत' करम-ए-किर्दगार पर बहके जो थे नसीब वो आख़िर सँभल गए