दरमियाँ फ़ासला बढ़ाते हुए कितना ख़ुश था वो दूर जाते हुए ख़ून पोरों से हो गया जारी बर्फ़ से उँगलियाँ हटाते हुए हम किसी और को भी देखें क्या आप को आइना दिखाते हुए क्या उदासी उतरने लगती है 'मीर' का शेर गुनगुनाते होते एक नुक़्ते पे मिल गए दोनों हिज्र का दायरा बनाते हुए जिस के दर्शन को नैन तरसे हैं कैसे देखेंगे उस को जाते हुए हम किनारे से आ लगे 'आसिम' आख़िरी शख़्स को बचाते हुए