दर-ओ-बस्त-ए-अनासिर पारा पारा होने वाला है जो पहले हो चुका है फिर दोबारा होने वाला है गुमान-ए-महर में ये बात ही शायद नहीं होगी हुवैदा ख़ाक से भी इक शरारा होने वाला है किनारा कर न ऐ दुनिया मिरी हस्त-ए-ज़बूनी से कोई दिन में मिरा रौशन सितारा होने वाला है पिघलने जा रहा है फिर से बहर-ए-मुंजमिद कोई समुंदर ही समुंदर का किनारा होने वाला है बहुत मख़्फ़ी जिसे रक्खा गया था चश्म-ए-इम्काँ से अभी कुछ दिन में उस का भी नज़ारा होने वाला है हमीं हैं उस की नींदें और हमीं उस के निगहबाँ हैं हमारे ख़्वाब पर किस का इजारा होने वाला है वही 'तारिक़'-नईम अब इस क़फ़स के बाब खोलेगा किसी की आँख से जो इक इशारा होने वाला है