दार-ओ-ज़िन्दाँ भी जाम-ओ-चंग भी है ज़िंदगी बे-कराँ भी तंग भी है अहल-ए-महफ़िल हों यूँ न अफ़्सुर्दा दामन-ए-शब में कैफ़-ओ-रंग भी है तुझे खोने का दिल को ग़म भी नहीं तुझे पाने की इक उमंग भी है कौन जाने कि मर्ग है सामाँ बाइस-ए-हिफ़्ज़ नाम-ओ-नंग भी है अल्लाह अल्लाह सियासत-ए-हाज़िर सुल्ह के साथ साथ जंग भी है