दर-पर्दा सितम हम पे वो कर जाते हैं कैसे गर कीजे गिला साफ़ मुकर जाते हैं कैसे आने में तो सौ तरह की सोहबत थी शब-ए-वस्ल देखेंगे पर अब उठ के सहर जाते हैं कैसे रंजिश का मिरी पास नहीं आप को मुतलक़ बरहम तुझे हम देख के डर जाते हैं कैसे ग़ुस्से में नया रंग निकाले हैं परी-रू जूँ जूँ ये बिगड़ते हैं सँवर जाते हैं कैसे उस साहिब-ए-इ'स्मत को यही सोच है हर सुब्ह बे-वज्ह मिरे बाल बिखर जाते हैं कैसे अय्याम मुसीबत के तो काटे नहीं कटते दिन ऐश के घड़ियों में गुज़र जाते हैं कैसे वो वक़्त तो आने दे बता देंगे 'शहीदी' बिन आए किसी शख़्स पे मर जाते हैं कैसे