दर्स लेंगे दिल के इक बे-रब्त अफ़्साने से क्या अहल-ए-दुनिया चाहते हैं तेरे दीवाने से क्या ये जला वो बुझ गई और बात मग्घम रह गई शम्अ' कहना चाहती थी अपने परवाने से क्या होश में होते तो उस का जाएज़ा लेते ज़रूर छोड़ कर आए हैं क्या लाए हैं मयख़ाने से क्या अब ये हालत है कि पी कर भी नहीं होता सुरूर नश्शा कोई ले उड़ा है मेरे पैमाने से क्या