डरता हूँ मोहब्बत में मिरा नाम न होवे दुनिया में इलाही कोई बदनाम न होवे शमशीर कोई तेज़ सी लेना मिरे क़ातिल ऐसी न लगाना कि मिरा काम न होवे गर सुब्ह को मैं चाक गरेबान दिखाऊँ ऐ ज़िंदा-दिलाँ हश्र तलक शाम न होवे आता है मिरी ख़ाक पे हमराह-ए-रक़ीबाँ यानी मुझे तुर्बत में भी आराम न होवे जी देता है बोसे की तवक़्क़ो पे 'फ़ुग़ाँ' तू टुक देख ले सौदा ये तिरा ख़ाम न होवे