दरयाफ़्त कर के ख़ुद को ज़माने से दूर हूँ हर शख़्स बा-शुऊर है मैं बे-शुऊर हूँ हिजरत मिरा नसीब है पर्वाज़ मश्ग़ला गुम्बद के दाएरे में मिसाल-ए-तुयूर हूँ गंदुम की ख़ुश्बू रक़्स में रखती है रात-दिन मस्ती-भरी शराब के नश्शे में चूर हूँ सदियों से बे-लिबास दरीदा-बदन उदास तस्वीर-ए-काएनात में बे-रंग-ओ-नूर हूँ बोसीदा सी किताब का इक हाशिया हो तुम लौह-ए-अज़ल पे लिक्खा मैं बैनस्सुतूर हूँ मेरा वजूद पानी हुआ मिट्टी और आग बिखरी हुई अना हूँ सुलगता ग़ुरूर हूँ फ़र्द-ए-अमल नविश्ता-ए-तक़दीर पढ़ चुका ख़ामोश सर झुकाए ख़ुद अपने हुज़ूर हूँ खींचा नहीं हिसार कोई अपने इर्द-गिर्द 'इशरत' मैं अपनी ज़ात में तन्हा ज़रूर हूँ