दश्त-ए-गुमाँ को नूर-ए-यकीं का जमाल दे तारीकियों के रुख़ पे सवेरा उछाल दे पलटूँ मैं ख़ाली हाथ तुझे कब रवा है ये कुछ तोहमतें ही ला मिरी झोली में डाल दे लहजा बिगाड़ कर न किसी से कलाम कर नफ़रत भी हो अगर तो सलीक़े से टाल दे पेशानियों के बाल उसी की पकड़ में हैं जिस को भी जैसे चाहे उरूज-ओ-ज़वाल दे शायद कि रंग लाए मोहब्बत की ज़िंदगी 'फ़ारूक़' दिल का ख़ून भी अश्कों में ढाल दे