दश्त ले जाए कि घर ले जाए तेरी आवाज़ जिधर ले जाए अब यही सोच रही हैं आँखें कोई ता-हद्द-ए-नज़र ले जाए मंज़िलें बुझ गईं चेहरों की तरह अब जिधर राहगुज़र ले जाए तेरी आशुफ़्ता-मिज़ाजी ऐ दिल क्या ख़बर कौन नगर ले जाए साया-ए-अब्र से पूछो 'सरवत' अपने हमराह अगर ले जाए