दश्त में फूल उगाने का हुनर जानता हूँ या'नी मैं शे'र सुनाने का हुनर जानता हूँ इक तिरी बात बनाए नहीं बनती मुझ से वर्ना हर बात बनाने का हुनर जानता हूँ तेरे कूचे में जो आऊँगा ठहर जाऊँगा कब यहाँ आन के जाने का हुनर जानता हूँ हाँ ख़बर-दार कि ऐ नाज़िश-ए-ख़ूबान-ए-चमन मैं हसीनों को लुभाने का हुनर जानता हूँ आँख से आँख लड़ा देने का ढब आता है होंट से होंट मिलाने का हुनर जानता हूँ मेरे लफ़्ज़ों में वो गर्मी है कि जिस से 'काज़िम' आग पानी में लगाने का हुनर जानता हूँ