दश्त में गुलशन में हर जा की है तेरी जुस्तुजू अब कहाँ ले जा रहा है ऐ फ़रेब-ए-रंग-ओ-बू आप इतना तो बता दें कब करम होगा हुज़ूर कब मुरव्वत में बदल जाएगी ये नफ़रत की ख़ू सादगी-ए-दिल पे अपनी रश्क आता है मुझे इक वफ़ा ना-आश्ना से है वफ़ा की आरज़ू इश्क़ की मंज़िल में लाखों कारवाँ गुम हो गए रहरव-ए-राह-ए-मोहब्बत क्या करेंगे जुस्तुजू रह गए हैं अब तो ले दे कर दिल-ए-बर्बाद में हसरत-ए-दीदार का ग़म और तेरी आरज़ू दे रही है अपने दामन की हवा बाद-ए-सहर तेरी ज़ुल्फ़-ए-अम्बरीं है इक जहान-ए-रंग-ओ-बू जब कभी साक़ी ने 'जाफ़र' अपनी नज़रें फेर लीं मय-कदे में पी लिया है मैं ने अरमाँ का लहू