दश्त मेरी ही दुहाई देगा By Ghazal << करो हम को न शर्मिंदा बढ़ो... गुल-ए-सुख़न से अँधेरों मे... >> दश्त मेरी ही दुहाई देगा फिर मुझे आबला-पाई देगा रौशनी रूह तलक आ पहुँची अब अंधेरे में दिखाई देगा ज़र्द पत्तों का धड़कता हुआ दिल ख़ामुशी में भी सुनाई देगा तोड़ कर देख तू आईना-ए-दिल शहर का शहर दिखाई देगा कश्फ़ ओ आगाही के आईने में अपना बहरूप दिखाई देगा Share on: