दश्त ने तालिब-ए-गुलज़ार किया है मुझ को मेरी वहशत ने गुनहगार किया है मुझ को गोशा-ए-ज़ात में आबाद है दुनिया मेरी ख़ुद की हस्ती ने गिरफ़्तार किया है मुझ को नक़्ल-ओ-हरकत ने बनाया है तमाशा मेरा बद-हवासी ने सज़ा-वार किया है मुझ को अब मिरे काम जो आए तो हुनर भी कैसे दिल ने शोहरत का परस्तार किया है मुझ को जिस्म के सेहर से निकला तो ये जाना मैं ने रूह ने सूरत-ए-अफ़्कार किया है मुझ को क्या बताऊँ कि अज़ल से है तमन्ना जिस की उस ने किस किस का तलबगार किया है मुझ को ख़ुद से लड़ता हूँ तो लगता है कि रन में 'राहत' वक़्त ने क़ाफ़िला-सालार किया है मुझ को