दश्त तारीक था और ख़्वाब था काला मेरा रौशनी देता रहा कान का बाला मेरा काटना था मुझे कोह-ए-शब-ए-ग़ुर्बत लेकिन टूट कर गिरता रहा राह में भाला मेरा तुझ को मा'लूम न थी चाक-गरेबानी मिरी तू ने इस दश्त में क्यों नाम निकाला मेरा आतिशीं रखती है याँ गर्मी-ए-रफ़्तार मुझे हूँ मह-ए-ख़ाक-नशीं गर्द है हाला मेरा ला-मकाँ ने मुझे फेंका है मकाँ की हद में किस से पड़ता है यहाँ देखिए पाला मेरा मंज़िल-ए-इश्क़ न ख़ाक-ए-शब-ए-हिज्राँ में मिली जादा-ए-रंज में खिंचता रहा नाला मेरा दस्त-ए-शफ़्फ़ाफ़ पे लिखता है मिरा नाम कोई शाख़-ए-सरसब्ज़ पे खुलता है उजाला मेरा मुझ को गर कार-ए-मोहब्बत में ज़रा देर हुई आ गया करने कोई और इज़ाला मेरा पार कर जाए ये शायद किसी दिन जू-ए-ख़ाक जिस्म को चाहिए कुछ और सँभाला मेरा शहर-ए-मौजूद धुआँ है मिरे बुझने से 'नवेद' शहर-ए-नाबूद में रहता है उजाला मेरा