दश्त-ए-दिल में सराब ताज़ा हैं बुझ चुकी आँख ख़्वाब ताज़ा हैं दास्तान-ए-शिकस्त-ए-दिल है वही एक दो चार बाब ताज़ा हैं कोई मौसम हो दिल-गुलिस्ताँ में आरज़ू के गुलाब ताज़ा हैं दोस्ती की ज़बाँ हुई मतरूक नफ़रतों के निसाब ताज़ा हैं आगही के हमारी आँखों पर जिस क़दर हैं अज़ाब ताज़ा हैं ज़ख़्म-दर-ज़ख़्म दिल के खाते में दोस्तों के हिसाब ताज़ा हैं सर पे बूढ़ी ज़मीन के 'अमजद' अब के ये आफ़्ताब ताज़ा हैं