दश्त-ए-हैरत में सबील-ए-तिश्नगी बन जाइए जो कभी पूरी न हो ऐसी कमी बन जाइए रात-भर रहिए मिरे हमराह नींदों की तरह दिन चढ़े तो लज़्ज़त-ए-आवारगी बन जाइए पहले तो मुझ को अता कीजे वही चेहरा मिरा वो नहीं तो फिर मिरी पहचान ही बन जाइए ताइर-ए-ख़स्ता की सूरत आप को देखा करूँ शाख़-ए-सिद्रा से उतरती रौशनी बन जाइए बैठे रहने से तो लौ देते नहीं ये जिस्म-ओ-जाँ जुगनुओं की चाल चलिए रौशनी बन जाइए