दश्त-ए-सुख़न में आए हैं ये भी कमाल है सब छोड़िए सुनाइए क्या हाल-चाल है कुछ इस तरह से पेश करेंगे हम आप को जैसे कि इक ख़याल का पहलू ख़याल है ज़ेहनों पे गर्द छाई है आता नहीं सुकूँ हम ऐसे जी रहें हैं कि जीना मुहाल है जिस हौसला-ओ-जज़्बे से कल शब लड़ा चराग़ ख़ुद तीरगी ने कह दिया लड़ना कमाल है उल्फ़त की रहगुज़र में कई मोड़ हैं अजीब तू साथ चल पड़ा है मगर बे-ख़याल है मैं जंग लड़ रहा हूँ किसी और की जगह मैं जीत भी रहा हूँ तो फिर क्या कमाल है