दश्त-ओ-सहरा की कहाँ अब ज़िंदगानी चाहिए और अगर ऐसा है तो होंटों को पानी चाहिए सोचता हूँ मेरे दिल तक किस तरह पहुँचे कोई बे-निशाँ घर के लिए कुछ तो निशानी चाहिए पुतलियों पर रक़्स करना ही कमाल-ए-फ़न नहीं दर्द के आँसू को तो पैहम रवानी चाहिए इक सुनहरा ख़्वाब मेरी नींद को दरकार है ख़्वाब को भी नींद ही की पासबानी चाहिए रात गुज़री है हिसार-ए-कर्ब में ऐ 'मज़हरी' शाम अब दिल के लिए कोई सुहानी चाहिए