दस्त-ए-ख़िरद से पर्दा-कुशाई न हो सकी हुस्न-ए-अज़ल की जल्वा-नुमाई न हो सकी रंग-ए-बहार दे न सके ख़ारज़ार को दस्त-ए-जुनूँ में आबला-साई न हो सकी ऐ दिल तुझे इजाज़त-ए-फ़रियाद है मगर रुस्वाई है अगर शुनवाई न हो सकी मंदिर भी साफ़ हम ने किए मस्जिदें भी पाक मुश्किल ये है कि दिल की सफ़ाई न हो सकी फ़िक्र-ए-मआश ओ इश्क़-ए-बुताँ याद-ए-रफ़्तगाँ इन मुश्किलों से अहद-बरआई न हो सकी ग़ाफ़िल न तुझ से ऐ ग़म-ए-उक़्बा थे हम मगर दाम-ए-ग़म-ए-जहाँ से रिहाई न हो सकी मुंकिर हज़ार बार ख़ुदा से हुआ बशर इक बार भी बशर से ख़ुदाई न हो सकी ख़ुद ज़िंदगी बुराई नहीं है तो और क्या 'महरूम' जब किसी से भलाई न हो सकी