दस्त-ए-कोहसार से फिसला हुआ पत्थर हूँ मैं सर-ब-सर संग-तराशों का मुक़द्दर हूँ मैं घूँट लम्हात की पी पी के धुला जाता हूँ अन-गिनत वक़्त के धारों का शनावर हूँ मैं क्या डुबो देता हूँ मैं दिल के कुएँ में ख़ुद को चश्म-ए-बे-नूर में यूसुफ़ का बरादर हूँ मैं किर्चियाँ ज़ेहन में पैवस्त हैं पलकों की तरह चश्म-ए-अय्याम से छूटा हुआ साग़र हूँ मैं ओढ़ लेती है मुझे सर्द फ़ज़ा की देवी कर्ब की धूप में तपती हुई चादर हूँ मैं मेरी आवाज़ को आवाज़ ने तक़्सीम किया रेडियो में हूँ टेलीफ़ोन के अंदर हूँ मैं नए माहौल से मानूस नहीं हूँ अब तक नन्हे बच्चे की तरह ख़ोल के अंदर हूँ मैं चंद अशआर मिले टाइप-शुदा दफ़्तर में टाइप-राइटर पे बिठाया हुआ बंदर हूँ मैं