बाइ'स कोई ऐसा है कि मैं कुछ नहीं कहता वर्ना मुझे सौदा है कि मैं कुछ नहीं कहता इल्ज़ाम ये झूटा है कि मैं कुछ नहीं कहता क्या वो मिरी सुनता है कि मैं कुछ नहीं कहता झूटा तिरा कहना है कि मैं कुछ नहीं कहता दा'वा मिरा सच्चा है कि मैं कुछ नहीं कहता तू देख रहा है जो मिरा हाल है क़ासिद मुझ को यही कहना है कि मैं कुछ नहीं कहता कहना जो न था कह गया देखो तो ढिटाई और फिर कहे जाता है कि मैं कुछ नहीं कहता वो ज़िद पे तुले बैठे हैं क्या बहस से हासिल मौक़ा ही ये ऐसा है कि मैं कुछ नहीं कहता थी समअ'-ख़राशी की शिकायत कभी उन को अब सुनता हूँ शिकवा है कि मैं कुछ नहीं कहता बद-गोई सी बद-गोई है बोहतान सा बोहतान और उस पे वो कहता है कि मैं कुछ नहीं कहता मैं कुछ कहूँ तो हाथ वो कानों पे हैं धरते और उल्टा ये छेड़ा है कि मैं कुछ नहीं कहता आता है जो मुँह पर वो कहे जाते हैं बे-रोक और उस पे ये फ़िक़रा है कि मैं कुछ नहीं कहता मैं देख चुका हूँ उन्हीं कह कह के मगर क्या उस का ही नतीजा है कि मैं कुछ नहीं कहता मैं किस से कहूँ क्या कहूँ सुनता है वहाँ कौन उस का ही ये मंशा है कि मैं कुछ नहीं कहता ये तर्क-ए-मोहब्बत नहीं उन से मगर ऐ दोस्त रंज ऐसा ही पहुँचा है कि मैं कुछ नहीं कहता क़ैंची सी चली चलती है देखो तो ज़बाँ और उस पर भी ये दा'वा है कि मैं कुछ नहीं कहता राज़ उन के खुले जाते हैं एक एक सभों पर और उस पे तमाशा है कि मैं कुछ नहीं कहता सच बात के सुनने की उन्हें ताब कहाँ है इस से यही अच्छा है कि मैं कुछ नहीं कहता बातें हैं कि छुरियाँ सी चुभी जाती हैं दिल में मेरा ही कलेजा है कि मैं कुछ नहीं कहता मैं कहने पे आऊँ तो रुला कर उन्हें छोड़ूँ मत पूछ सबब क्या है कि मैं कुछ नहीं कहता चुप-चाप सुनी अन-सुनी कर देता हूँ हर बात ग़ैरों में भी चर्चा है कि मैं कुछ नहीं कहता नाज़ुक है मिज़ाज उन का यहाँ सच की है आदत इस समझे सबब क्या है कि मैं कुछ नहीं कहता बिगड़ा है मिज़ाज और कहीं तेज़ न हो जाएँ मुझ को यही साँसा है कि मैं कुछ नहीं कहता क्यूँ अपनी ज़बाँ से कहूँ पूछो तुम उन्हीं से राज़ इस में नहीं या है कि मैं कुछ नहीं कहता जो रंज अज़ीज़ों ने दिए क्या कहूँ 'कैफ़ी' ग़ैरत का तक़ाज़ा है कि मैं कुछ नहीं कहता