दौर-ए-चर्ख़-ए-कबूद जारी है जिस्म-ओ-जाँ पर जुमूद तारी है गोया इंसाँ नहीं हयूला हूँ मेरी रग रग में दूद सारी है मौत हम-साए में हुई है तो क्या बज़्म-ए-रक़्स-ओ-सुरूर जारी है दोस्तों से वो क्या करेंगे सुलूक जिन पर अपना वजूद भारी है है तसव्वुर में इक रुख़-ए-रौशन और लब पर दरूद जारी है उम्र भर खुल सकी न दिल की गिरह ख़ूब शग़्ल-ए-कुशूद-कारी है भर न पाएगा ज़ख़्म-ए-दिल 'साहिर' ज़र्ब-ए-हर्फ़-ए-हुसूद कारी है