दौर-ए-मय है मगर सुरूर नहीं जल रहे हैं चराग़ नूर नहीं चोट खाने का शौक़ है दिल को निगह-ए-नाज़ का क़ुसूर नहीं लाख आओ न यूँ क़रीब मिरे तुम किसी वक़्त दिल से दूर नहीं दूर दुनिया से है मक़ाम तिरा मेरे ज़ौक़-ए-नज़र से दूर नहीं मैं नहीं तर्क-ए-मय पे गर क़ादिर तू तो मजबूर ऐ ग़फ़ूर नहीं लुत्फ़ क्या दें बहार-ओ-अब्र कि जब बादा-ए-ज़ीस्त में सुरूर नहीं बादा-ए-शौक़ दिल से पी ऐ 'अश्क' शीशा-ओ-जाम कुछ ज़रूर नहीं