दौर-ए-तूफ़ाँ में भी जी लेते हैं जीने वाले दूर साहिल से किसी मौज-ए-गुरेज़ाँ की तरह दिल की वादी में तिरा दर्द बरसता ही रहा अब्र-ए-नैसाँ की तरह अब्र-ए-बहाराँ की तरह फ़ासले वक़्त में तब्दील हुए जाते हैं ज़िंदगी रक़्स में है गर्दिश-ए-दौराँ की तरह दिल की तस्कीन को माँगे का उजाला कहिए रात इक शोख़ की याद आई थी मेहमाँ की तरह आरज़ू और ज़माने की कशाकश से गुरेज़ ज़िंदगी और चराग़-ए-तह-ए-दामाँ की तरह गर न हो ख़ातिर नाज़ुक पे गराँ तो कह दूँ बात भी दिल में उतर जाती है पैकाँ की तरह एक तस्वीर बनी सरहद-ए-इज़हार से दूर नुत्क़ हैराँ है मिरे दीदा-ए-हैराँ की तरह चाँद निखरा है तिरी लौह-ए-जबीं की सूरत रात बिखरी है तिरी ज़ुल्फ़-ए-परेशाँ की तरह किस ने हँस हँस के पिया ज़हर-ए-मलामत पैहम कौन रुस्वा सर-ए-बाज़ार है 'ताबाँ' की तरह