दवा असर नहीं रखती दुआ क़ुबूल नहीं ये कैसे लोग हैं जिन को ख़ुदा क़ुबूल नहीं मिरा भी दिल नहीं लगता घने मकानों में उसे भी शहर की आब-ओ-हवा क़ुबूल नहीं पहुँच तो सकता हूँ मंज़िल पे आप से पहले मगर मैं क्या करूँ जब रास्ता क़ुबूल नहीं कि जिस से शेर में मा'नी का इल्तवा ही न हो सुख़न के बाब में वो तजरबा क़ुबूल नहीं मैं वो फ़क़ीर हूँ जिस को दिलों के ताक़चों में ख़ुदा क़ुबूल है ख़ौफ़-ए-ख़ुदा क़ुबूल नहीं वो हुस्न है उसे ज़ेबा तमाम राज़-ओ-नियाज़ मैं इश्क़ हूँ मुझे शिकवा गिला क़ुबूल नहीं दिल-ओ-दिमाग़ पे तारी है उस का इश्क़ 'फ़िदा' दिल-ओ-दिमाग़ को दुनिया भी ना-क़ुबूल नहीं