दयार-ए-होश की पहले जुनूँ ख़बर लेना उड़ा के धूल न मिट्टी ख़राब कर लेना जफ़ा भी हो तो वो तुम जानो और हम जानें न हो किसी को ख़बर इस तरह ख़बर लेना निशानी ले के चलेंगे वतन को ग़ुर्बत की कहीं से दश्त का दामन ज़रा कतर लेना नियाज़-ए-हुस्न भी है ज़िंदगी के धंदों में किसी पे मरने की फ़ुर्सत मिले तो मर लेना इसी जहान से मिलता है दर्स-ए-इबरत भी हज़ार शर्त है लेना न कुछ मगर लेना न मय-कशी न इबादत हमारी आदत है कि सामने कोई काम आ गया तो कर लेना वफ़ा ख़राब है रफ़्तार-ए-बहर-ए-हस्ती की अभी तो डूब ही जा फिर कभी उभर लेना जनाब-ए-शैख़ तो बार-ए-गुनह से घबराए हमी उठाएँगे 'नातिक़' ज़रा इधर लेना