दयार-ए-इश्क़ में आते कभू रुतों के लिए भटकते फिरते हो क्यों तुम महूरतों के लिए न-जाने कौन-से लम्हों के इंतिज़ार में हो ज़रा भी वक़्त नहीं है कुदूरतों के लिए किसी किसी को है मा'लूम दर्द अंदर का कि हम तो हँसते रहे ख़ूब-सूरतों के लिए बहुत हैं चाहने वाले घमंड रखते हो हमें भी चाहा था सब ने ज़रूरतों के लिए हमारे चेहरे पे कुछ ख़ाल-ए-नक़्श हैं 'मंज़र' बहुत ज़रूरी हैं आयात सूरतों के लिए