दयार-ए-शाम न बुर्ज-ए-सहर में रौशन हूँ मैं एक उम्र से अपने ही घर में रौशन हूँ हुजूम-ए-शब-ज़दगाँ से फ़रार हो कर आज जमाल-ए-शोला-ए-शम-ए-सहर में रौशन हूँ मैं मुंतज़िर हूँ तो फिर मुंतज़र भी आएगा चराग़-ए-जाँ की तरह रह-गुज़र में रौशन हूँ न जाने कब मिरी हस्ती धुआँ धुआँ हो जाए मैं एक साअत-ए-ना-मोतबर में रौशन हूँ मिरे हरीफ़-ए-सुख़न कुछ तुझे ख़बर भी है तिरे सबब से हिसार-ए-हुनर में रौशन हूँ निज़ाम-ए-गर्दिश-ए-दौराँ मिरा मुक़द्दर है मैं इक सितारे की सूरत सफ़र में रौशन हूँ अकेला जान के ख़ुद को न हो उदास कि मैं मिसाल-ए-अश्क तिरी चश्म-ए-तर में रौशन हूँ मुझे तलाश न कर मेरी ज़ात में 'शहबाज़' बहुत दिनों से जहान-ए-दिगर में रौशन हूँ