दे के ग़म ये आप ने क्या मुझ पे एहसाँ कर दिया दोनों 'आलम की मसर्रत से गुरेज़ाँ कर दिया ज़िंदगी तारीक थी इक 'उम्र से मेरी मगर आप की यादों ने आ कर दिल फ़रोज़ाँ कर दिया आइए चाहे जिधर से अब कोई दिक़्क़त नहीं हम ने सब तारीक राहों को चराग़ाँ कर दिया देखिए वो शैख़ जी हैं मय-कदे से रू-ब-रू काम था मुश्किल मगर ये मैं ने आसाँ कर दिया वक़्त ने खेला है कैसा खेल मेरे साथ में उन को राहत बख़्श दी मुझ को परेशाँ कर दिया