दे के शहकार ख़द्द-ओ-ख़ाल उसे कर दिया रब ने बे-मिसाल उसे ज़ेब देता है ये जलाल उसे है मिला ऐसा ही जमाल उसे वो किसी और का हुआ निकला अब तो पाना लगे मुहाल उसे फूल खिल उठते हैं क़दम-ब-क़दम क्या हसीं-तर मिली है चाल उसे मुनफ़रिद हो गई है ज़ात उस की रब ने बख़्शे हैं वो कमाल उसे जैसे मैं सोचता हूँ उस को बहुत क्या मिरा भी है यूँ ख़याल उसे हर घड़ी मुज़्महिल सा है रहता जाने है कौन सा मलाल उसे