देख कर रू-ए-सनम को न बहल जाऊँगा मरते दम ले के सँभाला तो सँभल जाऊँगा तन कफ़न-पोश तो हो और ही पैराहन में उजले कपड़े में बदलते ही बदल जाऊँगा चमन-ए-दहर में वो बर्ग-ए-ख़िज़ानी हूँ मैं गर न बर्बाद हुआ आग में जल जाऊँगा हूँ वो साबित-क़दम ऐ चर्ख़ जो भौंचाल भी आए चाहे टल जाए ज़मीं मैं नहीं टल जाऊँगा मैं वो उफ़्तादा-ए-चश्म-ओ-नज़र-ए-आलम हूँ पाँव पकड़ेगी ज़मीं भी तो फिसल जाऊँगा साज़-ओ-सामान-ए-तरब कुछ न अगर हाथ आया झाँझ हो कर कफ़-ए-अफ़सोस ही मल जाऊँगा 'शाद' बहकूँ न कभी नश्शा-ए-दौलत हो हज़ार कुछ मैं कम-ज़र्फ़ नहीं हूँ जो उबल जाऊँगा