देखा है आज राह में हम इक हरीर-पोश पर यार कुछ न पूछ कि क्या छब चे-बर चे-दोश पीटूँ हूँ किस के ग़म में सर ओ सीना मैं कि आज हो है ये शश-जिहत से तक़ाज़ा कि हाँ ब-जोश सज्दा हो आस्तान-ए-हरम का नसीब-ए-शैख़ मैं और सर-ए-नियाज़ ओ दर-ए-पीर-ए-मय-फ़रोश फ़रियाद तीं सुनी न मिरी वर्ना गुल तमाम सुनने को नाला मुर्ग़-ए-चमन का हुआ है गोश 'क़ाएम' है किया हलाहिल ओ आब-ए-ख़िज़र पे हस्र आ जाए बज़्म-ए-दस्त में जो कुछ सो कीजे नोश