देखा है इक नज़र उन्हें अंजाम जो भी हो क़िस्मत में अपनी ऐ दिल-ए-नाकाम जो भी हो मेरी नज़र पे सारा ज़माना है मो'तरिज़ लेकिन वो इक अदा है लब-ए-बाम जो भी हो इम्कान फिर रिहाई की करता है कोशिशें मुर्ग़-ए-बला-नसीब तह-ए-दाम जो भी हो कुछ ईन-ओ-आँ को दख़्ल नहीं राह-ए-इश्क़ में अब उन का मेरे वास्ते पैग़ाम जो भी हो आँखों में वक़्त-ए-दीद कुछ आँसू ज़रूर थे हम पर अब इस के वास्ते इल्ज़ाम जो भी हो कहता है दिल की बात मगर अपने शे'र में क़िस्मत का मारा 'आसी'-ए-गुमनाम जो भी हो