देखा उसे दिल-गीर तो दिल-गीर हुआ मैं किस दर्द का रिश्ता था कि ज़ंजीर हुआ मैं जिस ख़ाक का पैवंद हुए नौहागर-ए-हर्फ़ उस ख़ाक की तासीर से इक्सीर हुआ मैं ऐ बाद-ए-तर-ओ-ताज़ा मुझे ग़ौर से पढ़ ले क़िर्तास-ए-पज़ीराई पे तहरीर हुआ मैं किस हैरत-ए-आईना के नख़चीर हैं दोनों तस्वीर हुआ वो कभी तस्वीर हुआ मैं सौ बार जो अंदर से मैं टूटा हूँ तो इक बार बाहर से नज़र आया कि ता'मीर हुआ मैं जो मैं ने कभी नींद में देखा ही नहीं था दुख ये है कि उस ख़्वाब की ता'बीर हुआ मैं किस हिज्र से गुज़रा हूँ कि बे-साख़्ता 'मोहसिन' लैला-ए-तमन्ना से बग़ल-गीर हुआ मैं