देखे उसे हर आँख का ये काम नहीं है कुछ खेल तमाशा-ए-लब-ए-बाम नहीं है मैं मो'तरिफ़-ए-जुर्म हूँ जो चाहो सज़ा दो इल्ज़ाम-ए-तमन्ना कोई इल्ज़ाम नहीं है वो सुब्ह भी होती है शब-ए-तार से पैदा जिस को ख़तर-ए-तीरगी-ए-शाम नहीं है जो दिल है वो लबरेज़-ए-तमन्ना है 'मुबारक' इस जाम से अच्छा तो कोई जाम नहीं है