देखे-भाले रस्ते थे फिर भी लोग भटकते थे दरिया सहरा और सराब मंज़र सारे फीके थे इक संजोग का क़िस्सा था कितने बंधन टूटे थे दिल तो उस का उजला था लेकिन कपड़े मैले थे नज़रें धुँदली धुँदली थीं चेहरे नीले-पीले थे गलियाँ कूचे सब जल-थल टूट के बादल बरसे थे कितने चाँद-गहन में थे कितने तारे टूटे थे वक़्त के बहते दरिया में कितने सूरज डूबे थे सारा जिस्म दहक उट्ठा शो'ले तो फिर शो'ले थे