देखें क्या अब के असीरी हमें दिखलाती है लोग कहते हैं कि फिर फ़स्ल-ए-बहार आती है ग़श चला आता है और आँख मुँदी जाती है हम को क्या क्या मिरी बे-ताक़ती दिखलाती है क्या सुना उस ने कहीं रुख़्सत-ए-गुल का मज़कूर अंदलीब आज क़फ़स में पड़ी चिल्लाती है ताएर-ए-रूह को परवाज़ का हर दम है ख़याल क़फ़स-ए-तन में मिरी जान ये घबराती है देख रोते मुझे हँस हँस कहे जाना हर दम जान से मुझ को तो तेरी ये अदा भाती है बज़्म-ए-हस्ती में तू बैठा है 'हवस' क्या ग़ाफ़िल कुछ जो करना है तू कर उम्र चली जाती है