देखिए ख़ाक में मजनूँ की असर है कि नहीं दश्त में नाक़ा-ए-लैला का गुज़र है कि नहीं वा अगर चश्म न हो उस को न कहना पी अश्क ये ख़ुदा जाने सदफ़ बीच गुहर है कि नहीं एक ने मुझ को तिरे दर के उपर देख कहा ग़ैर इस दर के तुझे और भी दर है कि नहीं आख़िर इस मंज़िल-ए-हस्ती से सफ़र करना है ऐ मुसाफ़िर तुझे चलने की ख़बर है कि नहीं तोशा-ए-राह सभी हम-सफ़राँ रखते हैं तेरे दामन में 'फ़ुग़ाँ' लख़्त-ए-जिगर है कि नहीं