देखिए तो शजर भी लगता है छूना चाहें तो डर भी लगता है तेरी यादें भी साथ रहती हैं और तन्हा सफ़र भी लगता है मौसमों का क़ुसूर है वर्ना शाख़ पर तो समर भी लगता है कोई आहट कोई निशान नहीं क्यों तुम्हारा गुज़र भी लगता है उन के आने से ये हुआ मालूम इक पयम्बर बशर भी लगता है अपने अल्फ़ाज़ को तराश 'निसार' बात करना हुनर भी लगता है