देखना जिन सूरतों का शक्ल थी आराम की उन से हैं मसदूद राहें नामा-ओ-पैग़ाम की रुख़्सत ऐ अहल-ए-वतन अब हम हैं और आवारगी हक़ रखे बुनियाद क़ाएम गर्दिश-ए-अय्याम की याद ने उन तंग कूचों की फ़ज़ा सहरा की देख हर क़दम पर जान मारी है दिल-ए-नाकाम की गर्दिश-ए-चश्म-ए-बुताँ कि बस-कि साग़र-नोश है गर्दिश-ए-गर्दूँ को हम कहते थे गर्दिश जाम की जब से खींचा 'लुत्फ' रंज-ए-फ़ुर्क़त-ए-यार-ओ-दयार अब हुई मालूम मेहनत गर्दिश-ए-अय्याम की