देखूँ हूँ यूँ मैं उस सितम-ईजाद की तरफ़ जूँ सैद वक़्त ज़बह के सय्याद की तरफ़ ने दाना हम क़यास किया ने लिहाज़ना-ए-दाम धँस गए क़फ़स में देख के सय्याद की तरफ़ साबित न होवे ख़ून मिरा रोज़-ए-बाज़-पुर्स बोलेंगे अहल-ए-हश्र सो जल्लाद की तरफ़ पत्थर की लेख था सुख़न उस का हज़ार हैफ़ बोली ज़बान-ए-तेशा न फ़रहाद की तरफ़ तुर्रा के तेरे वास्ते सद-चोब-ए-शानादार क़ुमरी गई है काटने शमशाद की तरफ़ 'सौदा' तू इस ग़ज़ल को ग़ज़ल-दर-ग़ज़ल ही कह होना है तुझ को 'मीर' से उस्ताद की तरफ़