देर में सो कर उठने वाले पड़े हैं बिस्तर उठने वाले चाय की बरकत से ख़ाली हैं देर में अक्सर उठने वाले शोर नहीं इस चुप की तलाफ़ी दिल में बवंडर उठने वाले हाए वो दीवानों के सर हैं आह वो पत्थर उठने वाले ख़त्म हुए ख़्वाबों के तमाशे आँख से मंज़र उठने वाले चेहरों की बीमार लताफ़त हाथ में साग़र उठने वाले यूँ भी कुचल देती है हसरत यादों के सर उठने वाले आस के वो मदहोश बगूले राहगुज़र भर उठने वाले धूप कड़ी है दिन लम्बा है और ये महशर उठने वाले