देर से सो कर उठने वालो तड़पो लेकिन शोर न हो तुम को हक़ है आईनों को तोड़ो लेकिन शोर न हो हम-साए का सुख तो उस के ख़्वाब का पूरा होना है तुम पर रिक़्क़त तारी हो तो रो लो लेकिन शोर न हो शाम ढले पर्वाज़ सिमट कर शाख़ों पर आ जाती है अपनी आँखें राहगुज़र में रक्खो लेकिन शोर न हो दीवाने भी अहल-ए-समाअत की ख़िदमत कर सकते हैं दिल होंटों पर आ जाए तो बोलो लेकिन शोर न हो 'मोहसिन' किस को फ़ुर्सत है जो तेशा ले कर आए यहाँ अपने बुत को अपने हाथ से तोड़ो लेकिन शोर न हो