देर तक इक साया-ए-अब्र गुमाँ देखा हुआ आग बनता जा रहा है साएबाँ देखा हुआ फिर इसी शिद्दत की टीसें हैं दिल-ए-कज-फ़हम में फिर वही है मजमा-ए-चारा-गराँ देखा हुआ देखता रहता हूँ शक्लें सोचता रहता हूँ नाम ढूँढता फिरता हूँ अक्स-ए-ना-गहाँ देखा हुआ राज़ है कोई जो मुझ पर मुन्कशिफ़ होने को है किस लिए लगता है अन-देखा जहाँ देखा हुआ क्या कहूँ किस कैफ़ में गुम है मिरी चश्म-ए-ख़याल हर कोई महसूस होता है यहाँ देखा हुआ झूट ठहरा है 'मुनव्वर' उन रुतों के दरमियाँ ख़्वाब-ए-इम्कान-ए-नुमू पैवंद-ए-जाँ देखा हुआ