देते हैं मेरे जाम में देखें शराब कब आता है माहताब के घर आफ़्ताब कब ठहरा है इक जगह दिल-ए-ख़ाना-ख़राब कब दरिया में घर बना के रहा है हबाब कब जब छोड़ दी उमीद तो वो मेहरबाँ हुए नाकामियों में बख़्त हुआ कामयाब कब देखा है वस्ल-ए-ग़ैर में शब उन को देखिए उल्टा असर दिखाती है ताबीर-ए-ख़्वाब कब 'कैफ़ी' को रिंद जान के जाने नहीं दिया है बारगाह-ए-ख़ास में वो बारयाब कब