धड़कनें बंद-ए-तकल्लुफ़ से ज़रा आज़ाद कर बरमला मुमकिन नहीं दिल में किसी को याद कर ज़िंदगी इक दौड़ है तो साँस फूलेगी ज़रूर या बदल मफ़्हूम इस का या न फिर फ़रियाद कर हर ख़िज़ाँ की कोख से होती है पैदा नौ-बहार दामन-ए-उम्मीद मैला और न दिल नाशाद कर बस्तियाँ तू ने ख़लाओं में बसाईं भी तो क्या दिल के वीरानों को देख उन को भी कुछ आबाद कर