ढलक के गिरने से ये दिल मिरा डरा हुआ है छलकते अश्कों में उस ने मुझे रखा हुआ है ग़मों के सारे परिंदे ही इस पे आ बैठे ख़ुशी की रुत में ज़रा सा जो दिल हरा हुआ है नहीं हैं बोलने वाले जो चार सू अपने हमारे कानों में ये शोर क्यूँ भरा हुआ है मुझे मिलेगा वो तिनका ही नाख़ुदा बन कर मिरे लिए किसी तूफ़ाँ में जो बहा हुआ है बुझा सके नहीं तूफ़ान-ए-सीम-ओ-ज़र उस को हवा के रुख़ पे चराग़-ए-अना जला हुआ है मिरी भी पहली मोहब्बत थी सिर्फ़ यक-तरफ़ा मिरे भी साथ हुआ सब से जो सदा हुआ है तुम्हारे प्यार का क़र्ज़ा है इस क़दर दिल पर फ़क़ीर-ए-दिल भी तो क़िस्तों में ही घिरा हुआ है है साँस साँस में ख़ुशबू उसी की अब 'सादी' वफ़ा का फूल जो दिल में मिरे खिला हुआ है