ढंग जीने का न मरने की अदा माँगी थी हम ने तो जुर्म-ए-मोहब्बत की सज़ा माँगी थी क्या ख़बर थी कि अँधेरों को भी शर्मा देंगे जिन उजालों के लिए हम ने दुआ माँगी थी इश्क़ में राज़-ए-बक़ा क्या है ख़बर थी हम को हम ने कुछ सोच समझ कर ही फ़ना माँगी थी माँगने वालों में शामिल तो थे हम भी लेकिन हम ने उस दर पे फ़क़त तर्ज़-ए-नवा माँगी थी बन गई हुस्न-ए-तलब भी तो मुअ'म्मा ऐ 'दिल' दर्द माँगा था वो समझे कि दवा माँगी थी